166. बता आसमान तेरा कद कितना है,
मुझे उस में उड़ान भरना है,
गुमनामी कि ख्वाहिश नहीं है मेरी,
मुझे तुझ से ऊपर निकलना है |
Author - Vikash Soni
167. जिस दिन तुम मेरी काबिलियत जान लो गे,
तब मुझे हजारों में भी पहचान लो गे,
फिलहाल तुम्हारे लिए में गुमशुदा ही सही |
Author - Vikash Soni
168. इतनी सराफत का क्या फायदा,
के सराफत को भी शर्म आ जाये,
और किसी कि हिमाकत इतनी बढ़ जाये,
कि हमारे सामने हमारे घर को आग लगा जाये |
Author - Vikash Soni
169. तुम बेकार ही हमें सता रहे हो,
और खुद को छोटा बना रहे हो,
हमें मुस्कुराकर अपना दर्द बताने कि आदत है,
तुम खामखा अपनी तकलीफ बड़ा रहे हो |
Author - Vikash Soni
170. उन्हें बड़ा गुमान था खुदपर,
कभी ना किसी से हारने का,
जरा मोहब्बत क्या हुई उन्हें,
वो अपना सब कुछ गवा बैठे |
Author - Vikash Soni
No comments:
Post a Comment