जन्म से निर्दयी माँ ने छोड़ा था, राधा माँ ने अपनाया था,
क्षत्रियओ की भीड़ में सूत पुत्र बतलाया था,
माँ की ममता मोन रही शास्त्र बहुत पछताया था,
तब दुर्योधन ने उसकी स्वास को थमा था ओर उसे अपना मित्र बनाया था,
कवच कुंडल दान में देकर जिसने इंद्र अभिमान को तोड़ा था,
तब दानवीर कर्ण नाम को उसने अपने हिस्से जोड़ा था,
भीषण रण् में रथ पर सवार,जब वो सुरवीर सा चौड़ा था,
उसकी हुंकार सुन भी माधव का धीरज डोला था,
तब कुरुक्षेत्र महारथी कर्ण के जयकारों से बारम्बार गुँजा था,
" अरे भगवन जब तुम उसे "
अर्जुन जैसा पाठ पढ़ाते, अपने रथ का पार्थ बनाते,
इंद्र संग ना सांच रचाते, ना उसकी माँ से वचन दिलाते,
ना विद्या का भूल कराते, ना रथ तुम भू में धसाते,
"तब युद्ध में उसे हराते, तब युद्ध गौरव कहलाता "
"कर्ण युद्ध में कहा हारा था, उसने तो अपना जीवन अपनी माँ पर वारा था "
Author -Vikash soni
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