कविता - " लक्ष्य "
गिरते है, संभलते है, हम सिर्फ़ आगे ही बढ़ते है,
अपने लक्ष्य पर हम, गिद्ध जैसी नज़र रखते है,
ना रुकते है, ना थकते है, जब पथ पर हम निकलते है,
आंगरों पर चलते है, हर रोज़ काँटों से गुजरते है,
तुमने थक कर हार है मानी, मैने अपनी ताकत पहचानी,
हमें अंधियारों कि फिकर नहीं, ना पूनम को हम रुकते है,
गिरते है, संभलते है, हम सिर्फ़ आगे ही बढ़ते है,
अपने लक्ष्य पर हम, गिद्ध जैसी नज़र रखते है,
हम अपने मन के दीपक को, अपने आगे रखते है,
दुनिया दारी कि चिंता, अब हम न ज्यादा करते है,
ना सजते है न स्वरते है, बस मिट्टी में सनते है,
जैसे अम्बर छुना है हमको, इतनी दम से हम उछलते है,
गिरते है, संभलते है हम सिर्फ़ आगे ही बढ़ते है,
अपने लक्ष्य पर हम गिद्ध, के जैसी नज़र रखते है|
Author - Vikash Soni
No comments:
Post a Comment