Shayari and kavita in hindi / किस्सा आशिक़ी और ज़िन्दगी का-शायरी/कविता आनंद/ Author -Vikash soni : मुशाफिर - " कविता " No. of. 17.

मुशाफिर - " कविता " No. of. 17.

           


     मुशाफिर - " कविता " 


मैने यहाँ कुछ मुशाफिरों को,  दो वक़्त की रोटी के लिए, अपना लहु बहाते देखा है,


फिर उसी  लहु से, मुस्कुराकर अपनी अर्धांगिनी  को,

 अपने से लाली लगाते देखा है, 


वो कोई और होंगे,  जो थक कर चूर हो जाते होंगे,


मैने थक कर चूर मुसाफिर को,  यहाँ बोझा उठाते देखा है,


वा री तक़दीर तेरे खेल निराले है,

तुने यहाँ किसी तोफे में दि बादशाहत और किसी को यहाँ नौकर साही से नवाज़ा है,


फिर भी  तु मेरा यकीन कर, मैने उन्हें तेरा हंसकर मज़ाक उड़ाते देखा है,


ये मुक़्क़ादर मैने सुना है, तु सब के हिस्से का भत्ता उन्हें बराबर देता है,


मगर उनके हिस्से फिर  क्यों कम भत्ता ही आता है,


फिर भी वो बड़ी शान से अपना गुजारा चालाता है 



इसलिए श्याद, उनकी आँखों का सुकुन, मुझे खुदा के नूर कि तरह नज़र आता है,


मैने आसमान तले, उन्हें,  चेन से, बिना किसी शिकायत के सोते हुये देखा है,


और मौसम कि मार से तक़दीर, मैने, तुम्हें, उन्हें सताते हुये देखा है,


फिर भी  तु मेरा यकीन कर, मैने उन्हें तेरा हंसकर मज़ाक उड़ाते  देखा है,



मैने यहाँ कुछ मुशाफिरों को,  दो वक़्त की रोटी के लिए अपना लहु बहाते देखा है,


फिर उसी  लहु से  मुस्कुराकर अपनी  अर्धांगिनी को, अपने से लाली लगाते देखा है |


                             Author -Vikash Soni

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