206. वो मासूमें मज़र, बड़े खास होते है,
जब हमारे सर पर,बुजर्गो के हाथ होते है,
क्या बचपन,क्या जवानी,कैसी उलझी कहानी,
नजाने अकेले जहन में, कितने सवाल होते है|
Author -Vikash soni
207. उस खुदा ने, मुझे, बस इतने रहमों कर्म से नवाज़ा है,
के मेरी ज़िन्दगी, हर किसी के लिए तमाशा है,
ये अल्फाज लिखे नहीं है, कुरदे गये कागज पर,
अब तुम्हीं देखलो,
मैने अपना सच,कितने सालिखें से कागज पर उतरा है |
Author -Vikash soni
208. भला अब, क्या कहे, इस जमाने को,
घर से निकल गये, हम कमाने को,
क्या धोखा, क्या फरेब, हर दर्द से अब बखिफ हूँ,
झूठा बोला, मैने, खुद के हर एक बहाने को,
चल पड़े फिर अपनी फूटी किस्मत आजमाने को |
Author -Vikash soni
209. मेरे सुरते हाल, मेरी, नाकाबी बया करते है,
कुछ पैरों के काटें, मुझे, भला इंसान समझते है,
क्या बर्बादी मुझ पर, इतनी ज्यादा ज़चती है,
के अब भी लोग मुझे माला माल समझते है |
Author -Vikash soni
210. भाई ज़िन्दगी में अब,जब भी तुमसे मुलाक़ात हो,
तब तुम्हारे दिल में किसी भी, खर्चे का मलाल ना हो,
उस दिन, बस इतनी ख्वाईश होगी मेरी, कि
तुम्हारे इस भाई के सामने,पैसे की कोई ओकात ना हो |
Author -Vikash soni

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