कविता - "पहेली "
एक पहेली, जो बुझाई, बुझ नहीं रही हम से,
उलझी जिंदगी सुलझाई, सुलझ नहीं रही हम से
जहाँ कहता है, जाने दो, रहने दो, तुम,
ये आवाज, ना जाने, सुनाई दे रही है,कब से,
लेकिन हम बैठे है, उलझने लेकर अपनी,
किसे क्या पता कि, ये उलझने, हमने सुलझाई नहीं कब से
सोच रहे है, बाहर निकल जाये हम,
ना जाने रास्ते छिपे है कहा, हमें रास्ता दिखे तो कसम से,
हम उतर गये,गहरे पानी में मगर,
जो सांस भरी है हमने, बस वो थमी रहे हम से
ये कश्मकश , उलझने मेरी सहेली,
ना जाने पूछ रही मुझसे,कैसी पहेली,
एक पहेली, जो बुझाई, बुझ नहीं रही हम से,
उलझी जिंदगी सुलझाई, सुलझ नहीं रही हम से |
Author - Vikash soni

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