176. मुझे यार बनाकर,मत लूटो दोस्तों,
हम पहले ही बहुत लुट चुके है,
और ये जो नाकाम लगाकर बैठे हो, मेरे सामने,
हम इनके पीछे छिपे रंग,पहले भी कई बार देख चुके है|
Author- Vikash soni*
177.उन्हें जरा भी कद्र नहीं है हमारी, और हमने रुह तक उनके नाम करदी,
खाने को दौड़ती है जोरू हमारी, इसलिए हमने भी जायदाद पड़ोसन के नाम करदी |
Author- Vikash soni*
178. तुम निगाहें ना फेरो ऐसे,के तुम्हारी निगाहों से कि अतिश वाजी, तुम पर बड़ी खूब जचती है,
तुम्हें मालूम नहीं शायद, के ये मेरे दिल का खंडर दिवाली पर भी ऐसा रोशन ना हुआ|
Author- Vikash soni*
179. खुश बहुत थे, हम उनका दिल चुराकर,
उसने भी मेरे इश्क़ का, सजदा कर लिया,
जब देखा हमने उन्हें मुसुकुराकर,
उसने बेखौफ, हमें बाहों में भर लिया |
Author- Vikash soni*
180. अब में अपनों के बीच नहीं, सपनों के बीच हूँ,
झूम रहा हूँ किसी भीड़ में, फिर भी खामोश हूँ,
सुना था,किसी से एक दिन मुझे भी सुकुन मिल जायेगा,
बस उसी सुकुन कि तलाश में आज कल मशरूफ हूँ |
Author- Vikash soni*

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