एक बात है तुम्हें बताने को,
क्या मिलेगा थोड़ा वक़्त तुम्हे सताने को,
के तुम्हारी एक मुस्कुराहट पर अपना सब कुछ कुर्बान करने को जी करता है,
के तुम्हें सिर्फ एक दफा देखने को ये मन बिन पानी के मछली सा तड़पता है,
सुना लगता है ये जहाँ जब तुम नज़र नहीं आती,
शायद तुम इस बात को कभी समझपाती,
के ये नदिया, पहाड़ झरने सब तुम्हें देख शर्मा ते है,
ये चंचल हवा के झोंके तुम्हें छु कर मंद- मंद इतराते है,
में दूर बैठा ये हर रोज़ देखा करता हूँ,
मन ही मन में तुमसे थोड़ा नाराज हुआ करता हूँ,
सोचा तुम्हें बता दू तुम मेरे लिए कितनी खाश हो,
अपनी सादगी पर तुम्हें भी थोड़ा नाज़ हो,
आज मौका मिला मुझे तुम्हे ये बताने को,
क्या इतना कभी तुम्हें अपना प्यार जताने को,
Author- Vikash soni
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