शीर्षक - "कर्म
सूरज कि गर्मी को क्या ग्रहण कम करता है,
अपने किये कर्मों का नफा नुकसान इंसान यही भरता है,
अपने किये कर्मों का सार जब ईश्वर के दरबार में तुम देखोगे,
शायद अपने किये कर्मों के बारे में तुम फिर थोड़ा सोचोगे,
लालच लोभ विलाष के पीछे मैने अपना वक़्त ख़राब किया,
मैने अपने खुद के हाथों से अपना जीवन वर्वाद किया,
क्या होता अगर दया प्रेम ओर भक्ति को में अपना केंद्र बिंदु बना लेता,
मद्द त्याग के मार्ग को में थोड़ा पहले से अपना लेता,
जो झूठी दौलत मैने सारी उम्र कमाई है ये परमेश्वर को लुभा ना पाई ये कैसी मेरी कमाई है,
निश काम भाव से किये अच्छे कर्म से कामये सिक्के यहाँ चलते है,
मैने तो बिल्कुल ना जोड़े मैने ये कैसी बिगड़ी बनाई है,
पश्चाताप लिपटा इंसान हरबड़ी में फिर झूठ यह बोला,
हे प्रभु में अपनी कर्मों कि थैली नीचे ही भुला हूँ क्या थोड़ी मोहलत देते तुम में अभी आकर हर्जाना तुम्हें देता हूँ,
प्रभु बोले हाँ नीचे जाकर मुझको ये सरा जग भुला है क्या में तुमको नहीं जानता तु मेरी कोक में 9 महीने झूला, झूला है,
जा फिर भी तुझे मैने 7 बार माफ किया,
जा नीचे फिर अच्छे कर्म को आधार बना ओर मेरी बात का थोड़ा तो मान बड़ा,
लोटा भुला इंसान फिर से माया में क्या जकड़े गा,
या अपने अच्छे कर्म से कमाए सिक्के अपनी थैली में रख लेगा |
Author - Vikash Soni
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