231. मेरे शहर के लोग मुझसे इतना जलते है,
के अब पहचान के लोग बड़ी मुश्किल से मिलते है |
Author - Vikash Soni*
232. कमबख्त ये बहारे इश्क़,
कही दोहज़्त में ना लेजाए हमें,
इसलिए महरबान ज़िन्दगी के दो पल,
हमें अभी मुस्कुराकर जी लेने दो |
Author - Vikash Soni *
233. मेरा मन कभी बचपन है कभी जवानों में है,
कभी नये में, कभी पुरानो में है,
अरे अब क्या बताऊँ तुम्हें इसकी दिल लगी का में यारों,
ये अब तक झूठे महबूब के बहानों में है |
Author - Vikash soni *
234. में मस्त हवा का झोखा हूँ बिना बात के ही महक जाता हूँ,
जरा इत्मीनान से सुन लो दो चार मेरे भी मोहब्बत के किस्से,
तुम्हारा जाता क्या है,
बस जरा सी तालियों की आवाज़ से तो में बहल जाता हूँ |
Author - Vikash soni *
235. हर पल हर लम्हा क्या तुमने मर्जी से जिया है,
दुनिया ने रखा जो ये विष का प्याला,
क्या तुमने भी पिया है,
क्या रिश्तों की पतंग जज़्बात के माझे से,
तुमने उड़ाई थी कभी,
उस माझे से लगे जख्मो को तुमने खुद से सिया कभी |
Author - Vikash soni *
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