226. इतना भी ना ठगो हमें, इस वक़्त ने हमें कई बार ठगा है,
यहाँ हर कोई पराया है, कोई नहीं किसी का सगा है,
और इतनी मीठी यादों में ना बधों हमें,
हमने इससे भी मीठी यादों का कड़वा घुट,
कई बार पिया है |
Author - Vikash Soni *
227. हमें आदत है कुछ पुराना याद करके नया बनाने की,
खुद की सादगी को अपना हुनर बताने की,
मगर नासियत कई मिली हमें इस ज़माने से,
लेकिन क्या करें,
हमें आदत है बिछड़े महबूब को निदों में बुलाने की |
Author - Vikash Soni *
228. भला क्या कसूर हमारी मासूमियत का,
बस हमने कहा नहीं माना बुजर्गो की नसीयत का,
एक दूर जली आग हमें भली लग रही थी ,
इसमें,
भला क्या कसूर हमारी नन्ही उंगलियों का |
Author - Vikash Soni *
229. हम कब कहे की तुम बेईमान हुये,
अरे शर्मिंदा तो हम हुये तुम्हें बिना छुए,
और तुम कह रहे खट्टा खाने का दिल कर रहा मेरा,
अभी चार दिन भी नहीं हुये हमारी सगाई हुये |
Author - Vikash Soni *
230. ना मोहलत ना कोई इनाम है,
बस हमारे हाथों में छलकता ये जाम है,
इतनी सिद्द्त से की हमने मोहब्बत उनसे,
फिर भी हमारे हाथों उनका ठुकराया पैगाम है |
Author - Vikash Soni *
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