जिसने कौरव सेना को साहस से खदेडा था
वो कोई युवान नहीं, अर्जुन का पुत्र और श्री कृष्ण का चेला था,
जिसने गुरु दोर्ण के रचत चक्रव्यूह को माँ कि कोक मे खेला था,
माँ कि लगी आँख छपकने तब निन्द्रा मे खेल बीच से छोड़ा था
चक्रव्यूह के अधूरे लेख, युद्ध भूमि मे षड्यंत्र अनेक,अपनी सेना का विध्वंश देख, वो भय से ना भयभीत था
आँखो मे लहु साने, काका का कहा ना माने, अपने पिता का मान बढ़ाने उसने चक्रव्यूह को तोड़ा था
अपनी जान रखी हाथ मे तेरहा महारथी के सामने फिर
अपने तीरो से , उन्हें प्रणाम भी वोला था
सारे महारथी लगे कापने जब उसने धनुष वाण से छोड़ा था
पार न पाये जब उस बालक से सारे मिल लगे घेरने मगर उसने मैदान ना छोड़ा था
धनुष वाण छीन उसे जब माटी मे यु रोधा था माटी भी महक उठी जब उसके बलिदान को देखा था
अपनी स्वास को वाण बनाकर टूटे रथ का चक्र उठा कर वो युद्ध करने आतुर था सारा जग जान गया तब अर्जुन पुत्र बड़ा बहादुर था
धर्म युद्ध, मे अधर्म देख वो भय से न भयभीत हुआ
अपने मात -पिता और कुल के गौरव खातिर वो कर्ण के हाथों शहीद हुआ
Author - vikash soni
1 comment:
Thankyou
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