जैसे मानो क़यामत का कोई हसीन मंजर मेरे दिल और दीमाग़ पर छाया
उसकी आँखे इतनी मोहनी कि जैसे मानो उनकी
कैद से शायद ही कोई बच पाया
उसकी जुल्फे इतनी घनी जैसे मानो काली रात में कोई शांत घना शाया
उसकी लबों कि मुस्कुराहट जैसे मानो कोई ख़ुशी का
पैगाम खुदा से हमारे लिए लाया
उसके गाल पर तिल जैसे मानो किसी गुलाब पर
मंडराता भवरे का शाया
उसका वदन इतना कोमल जैसे मानो कोई संगमरमर
का ताजमहल मेरे समक्ष ले आया
जब वो हमारे सामने से गुजरे तो हमें लगा जैसे मानो कोई बसंतऋतु में कली खिलाकर,शरदऋतु में बहार
ले आया
Author - vikash soni
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