तब जंगल मे त्योहारों का उत्सव नज़र आता है
किसान को लहलाहती फसल का अभास हो जाता है
एक नन्हा बच्चा उसे अपनी दोस्त बना घर ले आता है
कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका के प्यार मे फिर से मचल जाता है
कोई मायूस अपने दर्द से गमगीन हो जाता है
कोई शायर फिर अपनी कलम से प्रेरित हो जाता है
कागज की कस्ती फिर से बनने का मन चाहता है
बारिस का पानी जब पहले सावन मे धारा पर बरस जाता है
प्रकृति के मधुर संगीत को यु ही कानो मे गुनगुना जाता है
Author -Vikash soni
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