अभी चार दिन तो हुए, उसे अपने घर से
डोली में बैठ रुकश्त हुए,
में जानता हूँ तु नराज़ है उस बेबफा से,
मगर में फिर भी चाहता हूँ, तु मेरी सारी
जिंदगी उसके नाम करदे,
हे खुदा उस पर थोड़ा और रहम कर दे |
Author - Vikash soni
33. भटकता मन, दिल हमारा जुआरी
हासिनों कि महफ़िल में हम अकेले प्रेम पुजारी
कमबख्त एक दिल, हम तो सभी पर कुर्बान कर देते
मगर, तभी सामने से आ गई भाभी तुम्हरी |
Author - Vikash soni
34. यु तो बैठे रहे हम खामोश रातों में अकेले,
क्युँ उलझे रहे अपने ख़्वाबों में तन्हा अकेले,
वैसे तो उम्मीद के धागों से अपने ख्वाबों को बुन लिया
हमने,
मगर इन ख़्वाबों को हकीकत में पूरा कैसे करें अकेले |
Author - Vikash soni
35. हम इश्क़ कि वस्ती में, फिर से नया मकान बनायेगे,
ज़माने के पत्थरों ने तोड़ा है, जो हमारी मोहब्बत का
आशियाना,उसे हम फिर से बसायेगे
वो चाहे लेले, कितने ही इंतहान हमारी मोहब्बत के,
मगर, हम आशिक़ है जनाब, इतनी आसानी से कहा बाज़ आयेगे |
Author - Vikash soni
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