अगर सोने का है, तो बिकता क्यूँ नहीं,
इसे बेचना मेरी जरुरत है,
हालत तंग है मेरे आजकल,
और मुझे पैसों कि सक़्त जरूरत है |
Author- Vikash soni *
52. जब तक सास है, तब तक आस है,
मेरी तो इस वक़्त से बस यही दरख़ास है,
ये मुक़्क़दर बारिस कि तरह, अब बरस जा मेरे नसीब पर
अब मुझे, मेरी कामयाबी कि बड़ी प्यास है |
Author- Vikash soni *
53. अभी हमारा सफर बाकी है,
जिंदगी के कुछ इंतहान हमें देना बाकी है,
ये तो मुट्ठी भर, सितारे आये इन हाथों में मेरे,
अभी तो पूरा आसमान झुकाना बाकी है |
Author- Vikash soni *
54. क्यूँ खफा हे,ये मुसाफिर खुद से,
ये दर्द का दरिया है, युही बहता रहता है,
इस जिंदगी के सफ़र में उम्मीदों का धागा,
अक्सर हाथों से छुटता रहता है
खामोश होकर खुद को समेट, फिर से निकल
इन ज़िन्दगी की राहों पर,
अगर फिर भी मंज़िल ना मिले तुम्हें तो भी तजुर्बा
तुझे मिलकर तेरे साथ आगे बढ़ता रहता है |
Author- Vikash soni *
55. बंद कमरे की ख़ामोशी हमें सुनाई देती है,
दुनिया ने की जो हमारी रुशवाई हमें सुनाई देती है,
हमें लगता है, बस छोड़ दे सब कुछ,
दरवाजा खोल,बाहर निकल जाये, मगर
तभी हमारी कामयाबी की मंजिल पर, पहुंचने की
आहट हमें सुनाई देती है |
Author- Vikash soni *

No comments:
Post a Comment