खुद को खुदी से खुद का खुदा माना,
हमें क्या पता था, किस गली होगी खुद से खुद कि,
मुलाक़ात कभी,
जब मुलाक़ात हुई, तब खुद को उस ऊपर वाले खुदा
का गुलाम जाना |
Author - Vikash soni
62. तुम्हें क्युँ है, अफ़सोस उस बात का जो तुमने खुद से की
थी,
तुम क्युँ नाराज हो उस हकीकत से जो तुमने खुद से रची
थी,
क्या तुम्हें इल्म नहीं था की तुम क्या खो दोगे इस जहाँन
में,
फिर क्युँ तुमने कल खुद की बराबरी किसी ओर से की थी |
Author Vikash soni
63. तुम क्यों इस दुनिया से गुमराह होते हो,फिर युही खुद
से रोते हो,
अगर नहीं पता तुम्हें, अपनी मंजिल के रास्ते
फिर क्यों अंजानी, राहों में खोते हो,
नकाबपोश है यहाँ सब और तुम नादान परिंदे हो
फिर क्यों हर बार इनके मुख में तुम होते हो |
Author - Vikash soni
64. हम भी उन दिनों अपनों के संग सुकुन से बाते कर
लिया करते थे,
अपने आँगन में ख़ुशी से झूम लिया करते थे
अरे बड़े हसीन थे वो दिन
जब हम अपने माँ - बाप के साये में जी भर के ज़िन्दगी के मजे लिया करते थे |
Author - Vikash soni
65. क्युँ वक़्त तु मेरा इंतहान लिए जा रहा है,
मुझे युही परेशान किये जा रहा है,
तु क्युँ नहीं समझता मेरे जज्बातों को,
में भी एक मासूम इंसान हूँ,
तु युही मुझे तोफो में दर्द दिए जा रहा है |
Author - Vikash soni
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