शर्म हया के सारे दायरे सिमट जाते है,
एक मोहब्बत ही तो है,जो इस जहाँन को रोशन रखे
हुये है,
ऐसे ही नहीं,प्यार में मशरूम प्रेमियो के सामने, शाम
रोशन करने वाले जीराग, खुद व खुद बुझ जाते है |
Author- vikash soni
77.हम बेशर्म होकर उनकी शर्म देखते रहे,
उनके नजदीक होकर भी उनसे बात करने को दरसते रहे,
मगर उनकी मासूमियत से खिलवाड़ करने की हमारी
हिम्मत नहीं हुई,
हम वो प्यासे जो शाहिल सामने होने पर भी पानी को
दरसते रहे |
Author- vikash soni
78.अपनी जीत पर इतना घमंड मत कर मेरे दोस्त,
तुम्हारी जीत से ज्यादा किस्से है,हमारी हार के इस ज़माने में,
तुम ने त उम्र निकल दी वस पैसा कामाने में
और मेने अपनी जिंदगी गुजार दी लोगों के दिल मेंअपना
घर बनाने में |
Author- vikash soni
79. हमने रोता नहीं देखा,किसी और को हमसे ज्यादा,
कि उसे चुप कराने का हममें हुनर हो,
लेकिन उस दिन उसे,रोता हुआ भी हम नहीं देख पाये
जिसकी ख्वाहिशों में मेहनत भरपूर मगर किस्मत का
साथ कम हो |
Author- vikash soni
80. जाहे मेरा भगवान या उसका खुदा,
अब हमें नहीं कर पायेगे एक दूजे से जुदा,
में कही भी रहूँ, मेरी रुह उसके पास है,
ज़माने में नहीं है दम जो छीन ले मुझसे,
वो जुनुन मेरे पास है |
Author- vikash soni
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