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शिकायत तो गैर करते है, अपने तो समझाते है,
नाराज तो गैर होते है, अपने तो मनाते है,
तुम मेरे अपने सपने हो, जब से तुम आये हो,
उम्मीद अपने साथ लाये हो,
जब से हाथ तुम्हारा थमा, मैने अपने आप को जाना,
तुम नीदों से भी कोमल हो,फिर क्यों हकीकत से ओझल हो,
तुमने जान भरी इस जान में, जाने कोन घड़ी में आये थे,
पल भर के लिए सही,इन आँखों में नमी तुम लाये थे,
तुम मेरे अपने सपने हो, तुम ने स्वाश भरी इस तनमन में
तुमने आस भरी इस जीवन में,
अरे तुम ऐसे क्यों शर्माते हो, ना जाने क्या क्या तुम मुझे बतलाते हो,
इस दुनिया की भीड़ से तुम, मुझे सबसे अलग दिखाते हो,
उस रात को हुआ सबेरा, जिस रात तुम आये थे,
मेरी सोयी उम्मीदों को जब, वापस तुम जगाये थे,
बस तुमसे इतना कहना, मेरी उम्मीद तुम्ही से है,
गैरों पर विस्वास नहीं, मेरा साथ तुम्हीं से है,
तुम तो मेरे अपने सपने हो, जब से तुम आये हो,
उम्मीद अपने साथ लाये हो |
Author - Vikash soni

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