91.क्युँ हम पर युही सितम ठायें जा रहे हो,
क्युँ तुम किसी ओर के करीब हुये जा रहे हो,
तुम्हें चाहकर ऐसा कोन सा गुनाह कर दिया हमने,
क्युँ तुम बेवक्त, बेकदर, युही हमें तड़पाये जा रहे हो |
Author -Vikash soni
92. हम मशरूफ रहे, खुदके ख्यालों में,
हम मशरूफ रहे, जमाने के तरानों में,
लेकिन जब हम,ख्यालों से हकीकत में आये,
तो हम चूक गये, खुद को आजमाने में |
Author -Vikash soni
93. हम जीरागों कि तरह शान से जल जाते है,
हम अपना हुनर खुद पर ही आजमाते है,
अरे इन हवाओं से कह दो,कि जलने दे हमें
शान से,
क्योंकि हम खुद को जलाकर, अब किसी ओर का अंधेरा दूर करना चाहते है |
Author -Vikash soni
94. हम शाने मोहब्बत कि निगाहों से देख रहे थे, उन्हें
उनकी शीरत इतनी प्यारी, कि कोई न चाहकर भी
चाहे उन्हें,
युँ तो खामोश होकर देखते रहे, हम उनका मासूम
चहरा,
मगर कुछ तो बात थी उनमें, जो हम चाहकर भी
बता ना सके उन्हें |
Author -Vikash soni
95. में ऐसे ही हर वक़्त वे वक़्त, वक़्त से हारता रहा,
खुद को,बेपरवाह लोगों में गिनाता रहा,
जो वक़्त मेरा नहीं, वो मेरे किस काम का,
बस ऐसे ही खुद को, हर वक़्त समझाता रहा |
Author -Vikash soni

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