116. वो आशिक़ ही क्या, जिसने कभी मोहब्बत कर,शाराब
का जाम न पिया हो
अपने दर्द को कम कर, हर शाम को शान से ना जिया हो|
Author - Vikash soni
117. हम पर बेशक बड़ा संगीन इल्जाम है, खुद को बर्बाद
करने का,
और मुझे इल्म है इस जुर्म कि सजा का,
मगर इस ज़माने कि बेरुखी से हमें एतवार नहीं,
खुद को बर्बाद कर भला क्या ही बिगाड़ दिया मैने इस
ज़माने का |
Author - Vikash soni
118. अगर तुम्हें खुद पर यकीन है, तो क्यों मंजिल कि
राहों से डरते हो,
सफर चाहे कैसा भी रहे तुम्हारा,
मगर अंजाम वही होगा, जो तुम आज यकीन से
इस किताब पर लिख़ते हो |
Author - Vikash soni
119. तुम्हें अगर,बेपरवाह होकर,जीना है इस जहाँन में,
तो किसी पर एतवार मत करना मेरे दोस्त,
एतवार रखना तो सिर्फ खुद पर,
तुम किसी ओर के लिए, वर्वाद मत होना मेरे दोस्त |
Author - Vikash soni
120. चलो इस गुमनामी के अंधेरों से, हम पार पा जाये,
अपनी इस भरी जवानी से, फिर से इंकलाब ले आये,
खामोश होकर क्या ही मिला,इस जहाँन में किसी को
चलो आज अपने हक लिए इस जहाँन में शोर मचाये|
Author - Vikash soni
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