136. कुछ यार मिले है,जो हमें सभाल रहे है,
तार -तार मिले हम उनको, वो ज़ख्म छिपा रहे है,
हम खुद से नाराज होकर अकेले बैठे थे, किसी कोने में,
वो अब खींचकर हमें, हर एक महफ़िल में उतार रहे है|
Author- Vikash soni
137. चलो आवाज़ दे, आज खुद को फिर से
कहानी अधुरी रह गई, जो उसे पूरा करे फिर से,
गलतियां तो बहुत कि हमने इस ज़माने में,
चलो आज गलत फहमी दूर कर दे इस जामने कि फिर से|
Author - Vikash soni
138. ये मेरी बुझी हुई जिंदगी, तुझे क्या बताऊं कि जला क्या है,
ये जो आसमान में काला धुआँ देखा तुमने,तुझे क्या बताऊं कैसे उठा है,
तसल्ली है, कम से कम मेरी परछाई, मेरे साथ है,
बस इतना जान ले मेरी जिंदगी कि खाग में, मेरे हिस्से
बस यही लगा है |
Author - Vikash soni
139.खोमोश होकर इतनी,खोमोशी की उम्मीद नहीं थी हमें,
तन्हाइयों ने हमें सबसे, युँ अकेला कर दिया,
ये जिंदगी, तेरे अपने दिल से ऐसे उतरने की उम्मीद नहीं थी हमें,
मगर हालातों ने, हमें ये कहने पर मजबूर कर दिया |
Author - Vikash soni
140.ज़िन्दगी की कुछ हसीन यादों, के बारे सोचता रह गया,
अपने मुक़्क़दार को युही,कोसता रह गया,
लापरवाही की भी एक हद होती है,जिंदगी में बस यही सोचकर,
अपनी कहानी के पीछे छिपे आँशुओं को पोछता रह गया|
Author - Vikash soni
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