141. सारे यहाँ वक़्त के मारे नज़र आते है,
अपनी ख्वाहिशओं से मुँह मोड़े नज़र आते है,
दो वक़्त की रोटी ने नजाने कितनों के हाथ बांध रखे है यहाँ
जरा तुम्ही देख लो इन निगाहों में, तुम्हें कितने ख़्वाब,इनमें टुटे नजर आते है |
Author - Vikash soni
142.अगर खुदा मिले तो, पूछ लू जिंदगी जीने का सलीक़ा
अब हमसे ये जहर पिया नहीं जा रहा,
हम युही भटक रहे है दर - वदर, गुमनामी के अधेरों में,
अब हमसे हमारा भटा हाल, सिया नहीं जा रहा |
Author - Vikash soni
143.हमारी जरा आँख क्या लगी, ना जाने सारे सितारे कहा खो गये,
हमें खबर ही नहीं, किन अधेरों में हम, इतनी इत्मीनान से सो गये,
जब आँख खुली तब तक लुट चुके थे हम,
बस उस दिन के बाद कोई नहीं पहचानता हमें,हम इतने भटे हाल जो गये|
Author - Vikash soni
144. इस लुटे हुये आशिक़ का मंज़र देख लो मुसाफिरों,
के ज़िन्दगी से दिल भर जाता है, सिर्फ एक बार
मोहब्बत की नीलामी पर |
Author - Vikash soni
145.हम वेखबर रहे, हर एक खबर से,
हम वेसब्र रहे, अपने हर एक सब्र से,
हम तो हर जहर सोक से चख गये,
वेखबर,बिना डरे,उसके जानलेवा असर से |
Author - Vikash soni
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