" अंतरमन "- "कविता "
ओरों की बात नहीं, तुम क्या अपनी बात करते हो,
क्या अपने अंतरमन पर, तुम विस्वाश करते हो,
तुम विस्वाश करते हो तो, क्यों दुनिया से डरते हो,
जब में तेरे अंदर हूँ, तो क्यों किसी और से आस रखते हो,
में तुम को जान गया अब, क्या तुम खुद को जाने हो,
अपनी मर्ज़ी के क्या तुम, सच में, खुद के खुद से मालिक हो
अपने बीते कल की बाते मुझको, रोज़ कई सुनाते हो,
अपने आने वाले कल की बाते, बड़ी खूब बनाते हो,
ना जाने तुम अपने अंदर, कितने तूफा पाले हो,
गलती करके पछताते हो, क्या कभी मेरी बात तुम माने हो,
फिर भी में तेरा दर्पण हूँ, में तेरा अंतरमन हूँ, तुझे हर रोज़ में बेहलाऊँगा,
जब तेरी होगी आँखे नम, तेरे आँशु पोछ जाऊंगा,
में तेरा अंतरमन हूँ |
Author - Vikash Soni
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