236. एक से भले दो, दो से भले तीन,
और सब मिलकर बजा रहे हो बीन,
अरे किसी दीन के न बचोगे,
तुम करलो यकीन,
सामने से निकल जायेगी नागिन,
तुम्हारा चैन और सुकुन छीन |
Author - Vikash soni *
237. में बद मस्त अपने दर्द में, मुस्कुराकर जी रहा हूँ,
तुम मत करो अफसोश के, में यह जहर पी रहा हूं,
भले ही में, तुम्हारे लिए,बेगाना गुमनाम पागल आदमी सही,
मगर यकीन करो, तुम्हें भी यह ज़िन्दगी दोबारा मिलेगी नहीं |
Author - Vikash soni*
238. सुन ज़िन्दगी, मैंने देखा है मौत बड़ी हसीन है,
तभी तो उसके सामने आते ही हर कोई,
अपना प्यार, यार,घर वार, परिवार सब भूल कर,
उसकी आगोश में समा जाता है,
उसने मुझे भी एक बार धोके से अपने पास बुलाया,
मगर उसे खबर नहीं थी कि हमें कहा कभी किसी से पहली नज़र में इश्क़ हो पाया |
Author - Vikash soni *
239. खुद कि हस्ती मिटाकर नई हस्ती बनाना चाहता हूं,
नफ़रत कि दिवार मिटाकर प्यार कि नई बस्ती बसाना चाहता हूँ,
ओर लोग हिम्मत वाला नहीं बल्कि पागल समझते है मुझे,
सिर्फ़ इसी लिए कि में,
घने तूफान में नई कस्ती बनाना चाहता हूँ |
Author - Vikash soni *
240. कुछ हाथों की लकीरों पर रज गया मेंहदी का रंग गहरा,
कुछ मासूमों की ज़िन्दगी पर लग गया गैरों का पहरा,
वरना वो भी इस गुलस्तान में अपने ख्वाबों का फूल खिला लेते,
जिन्हे कुछ समझदार लोग समझने गये फिर समझा उन्हें बहरा |
Author - Vikash soni *