Shayari and kavita in hindi / किस्सा आशिक़ी और ज़िन्दगी का-शायरी/कविता आनंद/ Author -Vikash soni

कविता -"खुद का निर्माण " No. of. 21

          


 कविता -"खुद का निर्माण "


में करता खुद का निर्माण कही,

हाँ में टुटा हूँ ये बात सही,

दुनिया ने मेरी बातों को,

बिन शिर पैर का जाना था,

मेरे जज़्बातों को, 

कैसे ठोकर मारा था,

मेरे टुटे मन पर अब,

करना कोई आघात कभी,

में करता खुद का निर्माण कही,

हाँ में टुटा हूँ ये बात सही,

क्या मेरे अपनों का भी, 

छूटा कोई अंगत है,

क्या होली के रंगों में,

वो पहले वाली रंगत है,

क्या मेरे बिछड़े यारों,

की मेरी जैसी संगत है,

मेरे आँगन की रौनक, 

अब तक मेरी जन्नत है,

कैसे जोड़ूं इन धागों को,

इतनी मेरी मन्नत है,

मेरे अश्कों के दीपों ने,

फिकी देखी दिवाली,

क्या मेरे अपनों के चेहरों,

पर अब वो पहले जैसी मुस्कान नहीं,

में करता खुद का निर्माण कही,

हाँ में टुटा हूँ ये बात सही |


                       Author - Vikash soni

किस्सा आशिक़ी और ज़िन्दगी का -"शायरी " No. of. 201. to 205.

 


201. अब क्या दास्तान सुनाऊ, तुम्हें में, अपनी हकीकत की,

          के, की थी,मोहब्बत मैने ऊँची हैसियत की,

          फिर मेरा हर ख्वाब टूट कर बिखर गया यारों,

       उसके बाद किसी ने खबर भी ना ली मेरी खैरियत की |


                               Author - Vikash soni


202. दुनिया का गोल, होल है,

       आपका यहाँ क्या गोल है,

        हर बात का यहाँ मोल है,

        मेरे बस इतने बोल है|


                                Author - Vikash soni


203. जिस में ना सुर है ना ताल है,

       बाजार में बिकता वही माल है,

       हम से कहते है लोग तु भी आजमाले,

       पैसा कमाने की बस यही चाल है |


                               Author - Vikash soni


204. डूब गई नाओं,

       फिसल गया पाओ,

       अब तो जहाँ मिले छाओं,

       वही अपना गांव |


                                Author - Vikash soni


205. जतन लाख करलो तुम हमसा हमदम पाने की,

         जर्रा भर भी नहीं हमारे जैसा ढूंढ पाओगे तुम,

         नुमाइश लाख  कर लो इस जिस्म ज़माने में,

       रुह को दे जो सुकुन ऐसा चैन नहीं ढूंढ पाओगे तुम |


                                 Author - Vikash soni





                                  

किस्सा आशिक़ी और ज़िन्दगी का -"शायरी " No. of. 196. to 200.

 


196. दूर से महबूब का दीदार किया नहीं जाता,

         मुद्दों बाद किसी का सुक्रिया किया नहीं जाता,

         लोग कहते है कि हम खुश है अकेले,

क्या बताये किसी को के उनके बगैर हम पे अब जिया नहीं जाता|


                          Author - Vikash Soni


197. भीड़ में किसी सक्श के हाल का पता नहीं चलता,

        मुस्कुराहट से उसमें छिपे दर्द का पता नहीं चलता,

    और भले ही बरखुब देखा है तुमने संदर अपनी आँखों से,

       मगर दूर से संदर की गहराई का पता नहीं चलता|


                      Author - Vikash Soni


198.  हिन्दू, मुस्लिम,शिख,ईसाई,

         सबको परेशान करे लुगाई,

       अब कहा जाकर ये देंगे दुहाई,

      ये आफत इन्होंने खुद गले लगाई |


                        Author - Vikash Soni


199. मैने तुझे चाहा इस कदर,

        के भटक रहा हूँ दर बदर,

        तेरी महक आज भी, 

         मेरे तन से आती है,

        तु रुह समाई इस कदर |


                            Author - Vikash Soni



200. हमसे नजरें ना फेरो तुम,

         क्या अपना तिलस्म हमें ना दिखाओगे,

         या तुम्हें डर कि हम भी कही,

         पागल ना हो जाये ओरों कि तरह,

         तो फिर बताओ भला तुम हमें अपना कैसे बनाओगे |


                            Author - Vikash Soni








किस्सा आशिक़ी और ज़िन्दगी का -"शायरी " No. of. 191. to 195.

 




191. में अपने साथ हुये, हादसे का,

          अकेला गवाह हूँ,

          जहाँ में,वेगुन्हा होते हुये भी,

          गुनेहगार रहा हूँ |


                                Author -Vikash soni


192. मैने एक पल में,अपना सब कुछ गवाया है,

         खुदको, गुमनामों कि गिनती में गिनाया है,

         हालत इस कद्र ख़राब हुये थे मेरे,

         ये, में ही जानता हूँ, कि

         किस कद्र, मैने खुद को बचाया है |


                                  Author -Vikash soni


193. मोहब्बत जान ले लेती है, अक्सर मासूम आशिकों कि,

        अरे वो खून कि लाली लगाती है, किसी भरी जवानी कि,

         किसी का बेटा, किसी का पिता, किसी का भाई, छीन           लेती है वो,

         अरे अब क्या मिसाल दू में तुम्हें, ऐसी मोहब्बत की,               कहानी कि |


                                    Author -Vikash soni


194. बड़ी दिलचस्पी दिखा रहे हो तुम हममें,

         हमें क्या तुम अपने घर ले जाओगे,

        अरे तुम, एक दिन भी नहीं झेल पाओगे हमें,

        ज़िन्दगी भर के वादे, तुम क्या खाख निभाओगे |


                                    Author -Vikash soni


195. बस इतनी सुकूनियत है मेरी,

         के रुह में उतर गया हूँ तेरी,

         जब भी हिजकियों से,

          गला सुख जाये तुम्हारा,

          तो समझ लेना के,

          तुझे याद कर रहा ये वेरी |


                                      Author -Vikash soni





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