कविता -"खुद का निर्माण "
में करता खुद का निर्माण कही,
हाँ में टुटा हूँ ये बात सही,
दुनिया ने मेरी बातों को,
बिन शिर पैर का जाना था,
मेरे जज़्बातों को,
कैसे ठोकर मारा था,
मेरे टुटे मन पर अब,
करना कोई आघात कभी,
में करता खुद का निर्माण कही,
हाँ में टुटा हूँ ये बात सही,
क्या मेरे अपनों का भी,
छूटा कोई अंगत है,
क्या होली के रंगों में,
वो पहले वाली रंगत है,
क्या मेरे बिछड़े यारों,
की मेरी जैसी संगत है,
मेरे आँगन की रौनक,
अब तक मेरी जन्नत है,
कैसे जोड़ूं इन धागों को,
इतनी मेरी मन्नत है,
मेरे अश्कों के दीपों ने,
फिकी देखी दिवाली,
क्या मेरे अपनों के चेहरों,
पर अब वो पहले जैसी मुस्कान नहीं,
में करता खुद का निर्माण कही,
हाँ में टुटा हूँ ये बात सही |
Author - Vikash soni